Meri Penang Yatra

मैंने जब मलेशिया जाने का प्लान बनाया तो तो सोचा पिछले दोनों ट्रिप्स में मैंने पेनांग की यात्रा नहीं की तो इस बार पेनांग जाना चाहिए. तो मैंने पहले तो फ्लाइट के टिकट्स देखे लेकिन उनकी टाइमिंग मेरे को सूट नहीं कर रही थी. जो भी फ्लाइट थी वो सब सवेरे सवेरे थीं. लगभग 11 बजे के आस पास. वैसे को कोई दिक़्क़त नहीं थी, लेकिन यदि हमारी कोलकाता वाली फ्लाइट थोड़ी भी देर हो जाती या इमीग्रेशन में थोड़ा ज़्यादा टाइम लग जाता तो हमारी फ्लाइट छूट जानी थी थी. इसलिए मैंने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा और तय किया की हमलोग एयरपोर्ट से बस स्टेशन जाएँगे और वहाँ से बस से पेनांग जाएँगे. मैंने देखा कि कुआलालम्पुर के बस स्टेशन से हर आधे घंटे पर एक बस पेनांग जाती है तो यदि हमें  थोड़ा लेट भी होता है तो हमलोगों को कोई ना कोई बस मिल ही जाएगी. इसलिए हमने बस की भी कोई बुकिंग नहीं करवाई.

भाग्य से हमारी फ्लाइट बिलकुल राइट टाइम पर थी और लगभग 7 बजे के आस पास हमलोग KLIA2 टर्मिनल पर उतर गए. मुझे एयरपोर्ट थोड़ा ख़ाली सा लगा. कुछ इस तरह।

 लेकिन मैंने इतना ध्यान नहीं दिया, सोचा सवेरे का टाइम है हो सकता है इस समय कम फ्लाइट आती हों. भीड़ शायद इमीग्रेशन काउंटर पर मिले. मलेशियन इमीग्रेशन हॉल बहुत बड़ा है और फिर भी कई बार यहाँ 1 से 2 घंटे तक लग जाते हैं. लेकिन जब हमलोग इमीग्रेशन हॉल में पहुँचे तो पूरा हॉल ख़ाली था, यहाँ तक कि आधे से ज़्यादा या ये कहूँ कि 70% इमीग्रेशन काउंटर बंद थे और जो चालू भी थे उनमें भी कोई वेटिंग नहीं थी. ज़्यादातर काउंटर या तो ख़ाली थे या फिर ज़्यादा से ज़्यादा एक, दो  आदमी इंतज़ार में थे।मैं जिस काउंटर के सामने लाइन में लगा उसमें मेरे आगे कोई नहीं था मैं सिर्फ़ वेट कर रहा था उस आदमी की जो काउंटर से अपना इमीग्रेशन क्लियर करवा रहा था. हमें इमीग्रेशन क्लियर करवाने में मुश्किल से 5 से 7 मिनट लगे होंगे. वहाँ से निकल कर हमलोग नीचे आये और पता किया कि बस स्टेशन कैसे जा सकते हैं तो पता चला कि एक बस हर आधे घंटे में जाएगी या आप एक टैक्सी ले सकते हैं. तो हमलोग वहाँ से बस स्टेशन आ गये लगभग एक या सवा घंटा हमें बस स्टेशन आने में लगा. वहाँ हमें 11:30 की बस मिली जो लगभग 4 या 4;30 तक हमें पेनांग पहुँचा देती. वैसे तो बस ठीक ठाक ही थी उसमें एसी भी था और पुश बैक भी लेकिन वो वॉल्वो जैसी नहीं थी. तो यात्रा बहुत आरामदायक नहीं रही. इसके अलावा बस ने हमें 5 बजे के बाद पेनांग पहुँचाया. वहाँ पहुँचने पर पता चला कि बस ने हमें जहां उतारा है वहाँ से अभी हमें टैक्सी से अपने होटल पहुँचने में एक घंटा से ज़्यादा लगना था. सब के सब फ़्रस्ट्रेट हो गये क्योंकि देखा जाये तो लगभग 15-16 घंटे से हमलोग सब ट्रैवल ही कर रहे थे और बुरी तरह थक गये थे लेकिन और क्या किया जा सकता था, हमने टैक्सी बुक की और लगभग 6:30 के आस पास होटल में चेक इन किया.

होटल अच्छा था और बिल्कुल बीच पर था यहाँ तक की उनके कई गेस्ट सवेरे ब्रेकफास्ट कर के वहीं से बीच पर उतर ज़ाया करते थे. ये आपको फोटो से ज़्यादा बेहतर समझ आएगी. इस फोटो में आप हमारे पीछे बीच देख सकते हैं। क्षमा चाहूँगा, मेरे पास होटल से बीच की इससे बेहतर तस्वीर नहीं थी।

 

होटल पहुँचने तक सब इतना थक चुके थे कि अब किसी में आज के दिन घूमने की हिम्मत नहीं बची थी. तो हमने तय किया की थोड़ी देर रेस्ट कर के हमलोग यहाँ से लिटल इंडिया जाएँगे और वहीं से ख़ाना खा कर वापस आ जाएँगे. और कल घूमेंगे. तो हमने थोड़ी देर रेस्ट किया और लिटिल इंडिया की तरफ़ चल दिये क्योंकि जहां हमारा होटल था वहाँ आस पास में कोई इंडियन रेस्टोरेंट नहीं था. हमलोग लिटिल इंडिया पहुँचे और कोई अच्छा सा रेस्टोरेंट खोजने लगे तो हमें किसी ने बताया की “सरदार जी” यहाँ का एक बढ़िया नार्थ इण्डियन रेस्टोरेंट है तो हमलोग वहाँ गये लेकिन वहाँ का ख़ाना बहुत ही बेकार था. मैं कोशिश करूँगा की उसके बारे में एक अलग ब्लॉग में कुछ लिख सकूँ. यदि कुछ लिखता हूँ तो उसका लिंक मैं नीचे दे दूँगा. फिर हम वहाँ से वापस आये और होटल में आ कर सो गये.

मैं होटल के बारे में कुछ बता दूँ. हमारा होटल था flamingo by the beach, ये एक 4 स्टार होटल है और अच्छा होटल है. रूम बड़े बड़े थे और ब्रेकफास्ट में बहुत से आइटम्स थे खाने को, ये अलग बात है की उसमें से वेज ऑप्शंस बहुत कम थे. वहाँ हमारे खाने के लायक़ ब्रेड बटर और सलाद जैसी चीजें ही थीं. हालाँकि मेरा काम चल गया था क्योंकि मैंने बहुत सा सलाद ले लिया था और साथ ही कस्टर्ड क्रॉसों भी ले लिया था जो की बहुत टेस्टी भी था. लेकिन बाक़ी लोगों को बहुत तकलीफ़ हुई क्योंकि उनके पास ब्रेड बटर के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था. यहाँ मैंने एक दिन ब्रेकफास्ट में देखा वहाँ पर नूडल्स रखे हुए थे और नाम लिखा था वेगन नूडल, तो मैंने सोचा चलो वेज है तो ट्राय किया जा सकता है। और मैंने थोड़ा सा ले लिया अपने प्लेट में। ये मेरी बहुत बड़ी गलती थी। मैंने सिर्फ़ एक बार इसे मुँह में डाला और मेरी शकल देखने लायक़ थी। उफ़फ़फ़ ये बिलकुल भी वेज नहीं लग रहा था। मैंने किसी तरह से ख़ुद को उल्टी करने से रोका और जो नूडल्स मेरे मुँह में थे उसे निगल लिया। मैं बिलकुल स्टांगली रिकमेंड करूँगा की जो गलती मैंने की थी यदि आप वेज हैं और इस तरह का ख़ाना खाने के आदि नहीं हैं तो ऐसा बिलकुल भी ट्राय नहीं करें. जो नूडल मैंने खाया था वो कुछ इस तरह का था।

 

मैंने देखा कि ये होटल लोकल मलेशियंस में बहुत पॉपुलर था क्योंकि पूरे होटल में विदेशी टूरिस्ट्स की बजाय लोकल मलेशियन परिवार भरे हुए थे. सवेरे जब हम लोग नाश्ता करने नीचे आये तो हमने पूल में देखा सिर्फ़ छोटे छोटे बच्चे और उनकी माएँ थी. मुस्लिम होने की वजह से किसी ने भी बिकिनी या ऐसा कुछ नहीं पहना था लेकिन सभी ने बुर्किनी टाइप कुछ पहना हुआ था. बुर्किनी मुख्य तौर पर मुस्लिम औरतों को पूल में जाने के लिए बनाया गया है. इसमें उनका पूरा शरीर, यहाँ तक की सिर भी ढँका रहता है और सिर्फ़ चेहरा खुला रहता है. ये दिखाता है कि मुस्लिम महिलाएँ अपनी सीमा में रहकर भी सबकुछ कर सकती हैं.

ख़ैर ये तो हुई होटल कि बात अब आगे चलते हैं. सवेरे नाश्ता करने के बाद हम लोग पेनांग हिल की तरफ़ चल दिये क्योंकि ये यहाँ का सबसे मुख्य जगह है देखने लायक़.

यहाँ एक टूरिस्ट ट्रेन की सहायता से हिल के ऊपर ज़ाया जाता है और ऊपर कुछ  ऐक्टिविटीज़ भी हैं, तो हमलोग वहाँ पहुँच गए लेकिन वहाँ पहुँचने पर पता चला कि कम से कम दो  घंटे का इंतज़ार करना होगा तब हमें ट्रेन मिलेगी. लगभग पौने दो घंटे के बाद हमें ट्रेन मिली और हम लोग ऊपर गये. बहुत से लोगों ने कहा था कि ट्रेन से भी अच्छा व्यू मिलता है लेकिन ये बिलकुल झूठ है. कैसा व्यू मिलता है ये देखने के लिए ये फोटो देखें.

 

पेनांग हिल का मुख्य आकर्षण है वहाँ व्यू और ब्रिज, जिसके लिये आपको वहाँ पहुँच कर अलग से टिकट्स लेने होते हैं. लेकिन जब हम लोग वहाँ पहुँचे तो पता चला कि एक तो ब्रिज का टिकट काउंटर किसी कारण से बंद है और दूसरी बात ये की जहां पर ट्रेन ने हमें ड्राप किया था वहाँ से क़रीब 2 किलोमीटर का ट्रेक करने के बाद ब्रिज मिलता है और हमारे साथ 2 बुजुर्ग भी थे तो उनके लिये ये ट्रेक संभव नहीं था. तो यदि टिकट काउंटर ओपन भी होता तो भी हमारे लिये ब्रिज तक जाना संभव नहीं था. ब्रिज के अलावा वहाँ पर एक बगी राइड थी जिसमें किसी को कोई इंटरेस्ट नहीं था, तो हमने वहाँ पर मौजूद एक दक्षिण भारतीय मंदिर और एक मस्जिद देखे मंदिर और मस्जिद दोनों ही बिल्कुल अग़ल बग़ल में थे और छोटे छोटे थे लेकिन वहाँ पर रंगों का काम और साफ़ सफ़ाई देखते ही बनती थी. लेकिन मंदिर के अलावा वहाँ हमें कोई ख़ास चीज नहीं दिखी और व्यू की बात तो कीजिए ही मत. बिलकुल बकवास टाइप व्यू था. कैसा व्यू था ये आपको ऊपर के फोटो को देख कर पाता चल गया होगा। तो पेनांग हिल हम लोगों को बिलकुल भी पसंद नहीं आया. हो सकता है यदि हम ब्रिज पर जाते तो बात अलग हो सकती थी लेकिन उसके बिना बेकार. अब हमें वहाँ से लौटना था और लौटने में भी हमें क़रीब 1.5 घंटे तक लाइन में लगना पड़ा.

हालाँकि जब तक हम नीचे आये ऊपर जाने की लाइन बिलकुल ख़ाली हो चुकी थी और कोई भी मुश्किल से 10 मिनट में ऊपर जा सकता था. यदि हमलोग सवेरे की बजे 2 या 2:30 तक आते तो मुश्किल से 2 घंटे में पेनांग हिल घूम कर आ सकते थे. जबकि सवेरे जाने की वजह से हमें लगभग 6 घंटे लग गये. तो मेरी सलाह ये होगी कि पेनांग हिल का प्रोग्राम दिन के दूसरे हाफ में ही रखें. मैंने ये ट्रिक पहले भी अपनाई है और सफलता पाई है. जब मैं सिंगापुर में यूनिवर्सल स्टूडियो गया था तो वहाँ के मुख्य आकर्षण थे आयरन मैन शो और रिवेंज ऑफ़ मम्मी. सबने मुझे सजेस्ट किया था कि जब वहाँ जाना तो जितना सवेरे स्टूडियो जा सको चले जाना और सबसे पहले इन्ही दोनों का नंबर लगाना क्योंकि लेट होने पर इन दोनों में ही बहुत भीड़ हो जाएगी और क़रीब आधा दिन इन्ही दोनों में बरबाद हो जाएगा. तो मैंने ट्रिक अपनाई और इन दोनों को ही सवेरे के टाइम में छोड़ दिया और शाम को लगभग 5 या 5:30 के आस पास इन दोनों के पास पहुँचा। तब तक ये दोनों ही इतने ख़ाली हो चुके थे की रिवेंज ऑफ़ मम्मी तो हम लोग सीधे घुसते चले गये और सीधे उस जगह पहुँच गये जहां पर आप किसी राइड पर चढ़ने के गेट होते हैं. मतलब जब हमलोग वहाँ पहुँचे तो जो राउंड चल रहा था उसके बाद सीधे नेक्स्ट राउंड में हमलोगों ने राइड की और आयरन मैन तो हमने दो बार देख लिया. इतना ख़ाली था. सॉरी मैं थोड़ा ऑफ टॉपिक हो जाता हूँ कभी कभी. 

तो हम लोग नीचे आ गये यहाँ हमने थोड़ा सा स्नैक्स लिया और निकल पड़े अगले पॉइंट की ओर, जो की एक बौद्ध मंदिर था. जब हमलोग पेनांग हिल आ रहे थे तो मैंने देखा था कि इस बौद्ध मंदिर का गेट पेनांग हिल से मुश्किल से 300 या 400 मीटर पर है, हमने वहाँ से पैदल  ही जाने का सोचा और गेट तक पहुँच गये, लेकिन गेट पर पहुँचने पर पता चला कि ये तो सिर्फ़ रोड पर एक इंडिकेटर है और असल मंदिर वहाँ से क़रीब 1 या 1.5 किलोमीटर अंदर है और जहां पर हम थे वहाँ से हमें कोई टैक्सी भी नहीं मिलने वाले थी वहाँ तक जाने के लिए. तो इतनी दूर पैदल जाना हम लोगों के लिए संभव नहीं था तो हमने वहाँ जाना कैंसिल कर दिया. यहाँ से हमलोग`एक दूसरे चाइनीज़ टेम्पल गये. यहाँ मंदिर का मुख्य कैंपस थोड़ा ऊपर है और वहाँ जाने के लिए मंदिर के अंदर छोटी सी रोपवे भी है, ऊपर तक जाने के लिए। और यदि आप जाना चाहें तो पैदल भी जा सकते हैं लेकिन ये काफ़ी थका देने वाला रास्ता है. 


जब हमलोग मंदिर पहुँचे तो पता चला कि रोपवे में कुछ प्रॉब्लम है और रोपवे बंद है. तो दोनों बुजुर्गों ने पैदल ऊपर जाने से मना कर दिया. तो अब मैं चेरी और तनु पैदल चले. लेकिन आधे से कुछ कम ऊपर जाने पर हमने देखा की रोपवे ठीक हो गया है और गोंडोला ऊपर से नीचे आ रहे हैं. तो हमलोग भी वापस आ गए और फिर से रोपवे टिकट काउंटर के पास पहुँचे तो पता चला अब बहुत देर हो चुकी है और अब रोपवे बंद होने का टाइम हो गया और सिर्फ़ ऊपर गई हुई गोंडोला ही वापस आ रही हैं. हमलोगों का मूड ख़राब हो गया और तनु ने कहा अब वो ऊपर नहीं जाएगी वापस. तो सिर्फ़ मैं और चेरी वापस ऊपर चढ़ने लगे. आधी दूरी चढ़ने पर हमने देखा की एक जगह एक शॉर्ट कट का बोर्ड लगा हुआ है जिससे हम जल्दी से मंदिर पहुँच सकते हैं. तो हमने वो शॉर्ट कट लिया और ऊपर जाने लगे. लेकिन हाय रे बैड लक, मंदिर पहुँचने के बिलकुल थोड़ी दूरी पर वो रास्ता बंद था अब यदि हमें मंदिर जाना था तो वापस आधे रास्ते तक जाने के बाद फिर से लंबा वाला रास्ता पकड़ कर ऊपर जाना होता. चेरी बहुत थक चुकी थी और मेरा मूड भी ख़राब हो गया था. तो हमने भी मंदिर जाने का आईडिया ड्राप किया और वापस आ गए. पूरा दिन बर्बाद करने के बाद हमने ब्लू मेंशन जाने का सोचा और वहाँ पहुँच गए. लेकिन हाय रे मेरी क़िस्मत, पता चला कि ब्लू मेंशन में कोई कन्वेंशन चल रहा है और विज़िटर्स के लिए मेंशन 2 दिन तक बंद है. 

हम ब्लू मेंशन को भी सिर्फ़ बाहर से देख पाये. अब यहाँ कुछ ख़ास करने को नहीं रह गया था तो हमने सोचा चलो यहाँ के वाल म्यूराल्स ही देख लें जो कि बहुत प्रसिद्ध हैं. चेक करने पर पता चला कि वाल म्यूराल्स किसी एक जगह पर नहीं हैं और थोड़ी थोड़ी दूरी पर एक एक है. तो हमने पहले एक पेंटिंग देखी और फिर वहाँ से आधा किलोमीटर वाक कर के दूसरी और फिर वहाँ से आधा किलोमीटर वाक कर के तीसरी. 

इतना चलने के बाद हमारे शरीर में ताक़त नहीं बही ठीक की चौथा या पाँचवाँ म्यूराल देखा जाये. तो हमने ये आईडिया भिन्न ड्राप किया और सीधे लिटल इंडिया आ गये ख़ाना खाने के लिए. कल हमलोग “सरदार जी” गये थे  और वहाँ जाने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी किसी कि तो हमने एक दूसरा फ़ेमस रेस्तराँ खोजा जो थोड़ा ज़्यादा प्रसिद्ध था उसका नाम wood से कुछ था (sorry मैं पूरा नाम भूल गया).

 वहाँ हमने पहले तो डोसा और इडली मंगाया जो की अच्छा था लेकिन उसके बाद जब हमने छोला भटूरा और कुछ दूसरे नार्थ इण्डियन डिशेज़ मंगाई तो हमने सिर पीट लिया. सबकुछ बिलकुल बकवास टाइप था. किसी तरह से हमने ख़ाना फिनिश किया और वापस होटल आ गये. अब हमारे पास यहाँ कुछ करने को नहीं था. हम लोग होटल वापस आये और सो गये. क्योंकि सवेरे हमें वापस जाना था. यहाँ मैं बताना भूल गया कि कल की बस राइड से हम सब लोग परेशान हो गये थे हमने वापस जाने के लिए फ्लाइट लेने का तय किया और अगले दिन की फ्लाइट बुक की जो बस से थोड़ी ही महँगी थी. शायद बस से ड़ेढ़ गुना या ऐसा ही कुछ. ठीक से मुझे याद नहीं. अगले दिन भी हमारे साथ कुछ अजीब हुआ एक तो पहले कोई टैक्सी मिल नहीं रही थी सवेरे सवेरे और ऊपर से जब एक टैक्सी बुक हुई तो थोड़ी देर के बाद वो बुकिंग अपने आप कैंसिल हो गई. भाग्य से हमें दूसरी टैक्सी मिल गाइए तुरंत ही और हमलोग टाइम पर एयरपोर्ट पहुँच सके.

Comments are closed.